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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।

उत्तर -

आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की संक्षिप्त रूपरेखा इस प्रकार है-

१. सिन्धी - सिन्ध शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द सिन्धु से विद्वानों ने जोड़ा है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ। मूल शब्द सम्भवतः संस्कृत न होकर द्रविड़ 'सिद्' या 'सित्' था और सिन्धु उसी का संस्वीकृत रूप है। सिन्धु का विकास सिंध रूप में हुआ और यह उक्त नदी की तटवर्ती भूमि के लिए प्रयुक्त होने लगा। मूलतः सिन्धी, सिन्ध प्रदेश की ही भाषा है। अब सिन्ध में 'सिन्धी' बोलने वाले प्रायः मुसलमान ही रह गये हैं। सिन्धी हिन्दू प्रायः कच्छ, बम्बई, अजमेर तथा दिल्ली आदि में हैं। सिन्धी भाषा का प्राचीनतम् संकेत भरत के नाट्यशास्त्र में मिलता है। ७वीं शदी में चीनी यात्री युआन च्यांग ने भी अपने यात्रा विवरण में इसका उल्लेख किया है। ८वीं शदी में कुवलयमाला में भी इसका उल्लेख मिलता है।

२. लहँदा - यह पश्चिमी पंजाब की भाषा है। यह क्षेत्र अब पाकिस्तान में है। लहँदा शब्द का शाब्दिक अर्थ है, 'पश्चिम' 'सूर्यास्त' या उतरता। इसी आधार पर इसका एक नाम 'पश्चिमी' भी है। पूरे पंजाब के पश्चिमी भाग की यह भाषा है, इसीलिए पंजाबी में इसे पहले सहन्दे दि बोली कहते थे। लहँदी, लहन्दा या लहँदा नाम उसी का संक्षिप्त रूप है। लहँदा, लहन्दा या लंडा का प्रयोग अंग्रजी ने प्रारम्भ किया। इसे पश्चिमी पंजाबी या डिलाही भी कहते हैं। हिन्दुओं के कारण इसका नाम हिन्दको या हिन्दकी, जाटों के कारण जाटकी तथा ऊच के कारल उच्ची पड़ा। हैं

३. पंजाबी - पंजाबी शब्द फारसी का है। इसका अर्थ है - पाँच नदियों का देश। पाँच नदियाँ - सतलज, रावी, व्यास, चेनाव और झेलम पंजाब प्रदेश की भाषा होने के कारण इसका नाम पंजाबी है। वर्तमान काल में इसका क्षेत्र पूर्वी पंजाब तथा पाकिस्तान स्थित पंजाब है। यह भाषा पश्चिमी पहाड़ी, बाँगरु, बागड़ी, बीकानेरी तथा लहँदा से घिरी है। बोलने बालों में सिक्खों की प्रधानता के कारण इसे सिक्खी, खलासी आदि अन्य नामों से भी पुकारा गया है। कभी-कभी लहँदा और पंजाबी दोनों को ही पंजाबी कहते हैं। लिपि के आधार पर इसे कभी-कभी गुरुमुखी भी कहते हैं। इसका एक प्राचीन नाम लाहौरी भी मिलता है। वस्तुतः यह नाम लाहौर की पंजाबी का है।

४. गुजराती - यह गुजरात की भाषा है। 'गुजरात' शब्द का सम्बन्ध 'गुर्जर' जाति के लोगों से है। ये मूलतः शक थे और पाँचवीं शदी के लगभग भारत में आये थे। पहले इनका क्षेत्र पंजाब एवं राजस्थान था, बाद में मुसलमानों के आक्रमण के कारण ये गुजरात की ओर चले गये। इस प्रदेश में इनको 'त्राण' मिला इसी कारण वह गुजरात कहलाया। गुजरात शब्द का प्रयोग यों तो १००० ई. के लगभग से प्रारम्भ हो गया था, किन्तु भाषा के अर्थ में गुजराती शब्द का प्रयोग अभी तक १७वीं शदी से पूर्व नहीं मिला है। इसका प्रथम प्रयोग प्रेमानन्द के दशम स्कन्द में हुआ है। गुजराती विद्वान् उमाशंकर जोशी इसे 'मसरु गुर्जर' तथा कन्हैयालाल मणिक लाल इसे मुशी गुर्जर अपभ्रंश कहते हैं। गुजराती साहित्य का प्रारम्भ १२वीं शताब्दी से माना जाता है।

५. मराठी - मराठी महाराष्ट्र की भाषा है। यह लगभग १ लाख वर्गमील में उत्तर में सतपुड़ा पहाड़ियों से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में नागपुर से लेकर पश्चिम में गोवा तक बोली जाती है। मराठी महाराष्ट्री से सम्बद्ध है। महाराष्ट्री प्राकृत केवल महाराष्ट्र या मराठी क्षेत्र की प्राकृत भाषा न होकर पूरे राष्ट्र (महाराष्ट्र) की भाषा या तत्कालीन राष्ट्रभाषा थी। इसी रूप में डॉ. घोष आदि ने उसे शौरसेनी के बाद की माना है। कुछ भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि 'मराठी' नाम महाराष्ट्री का विकसित रूप है और मराठी भाषा का चाहे प्रसिद्ध महाराष्ट्री प्राकृत से सम्बन्ध न हो किन्तु उस प्राकृत से, वह अवश्य सम्बन्धित है जो प्राकृत काल में मराठी क्षेत्र में प्रयुक्त होती थी।

६. उड़िया - उड़ीसा प्रान्त बंगाल में दक्षिणीं पश्चिमी मेदनीपुर आन्ध्र में टेक्कालि उद्यानखण्ड, तरला, इच्छापुर आदि बिहार में सिंहभूमि, सराइकेला खरसुआ आदि तथा मध्य प्रदेश में रायगढ़, सारगढ़, काँकेर वस्तर आदि लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक आधुनिक आर्यभाषा है। इसका सम्बन्ध मागधी अपभ्रंश के दक्षिणी भाग से है। उड़िया-भाषी उड़िया को ओडिया कहते हैं। इसके अन्य नाम ओरिया, उड़िया, उत्कली, ओड़ी आदि हैं। उड़िया का प्राचीन नाम 'कलिंग' 'उद्देश्य' या उत्कल मिलता है। आज भी उड़िया भाषी अपने देश को उड़ीसान कहकर ओडिशा ही कहते हैं।

७. बंगाली - मागधी अपभ्रंश के पूर्वी रूप से विकसित एक आधुनिक भारतीय आर्यभाषा जो प्रमुखतः बंगाल में बोली जाती है। 'बंगाली' शब्द का सम्बन्ध बंगाल के प्राचीन नाम 'बंग' से हैं। 'बंग' शब्द मूलतः कदाचित आस्ट्रिक है। बंग में आल प्रत्यय लगाकर बंगाल बना है और उसी आधार पर वहाँ की भाषा को बंगला या बंगाली कहा जाता है। इसके अन्य नाम गौड़ी, प्राकृत मागधी, गोल्ली आदि भी मिलते हैं।

८. असमी - यह आसाम की घाटी तथा उसके आसपास लगभग ८० हजार वर्गमील में लोगों द्वारा बोली जाती है। असम का प्राचीन नाम 'प्राग्ज्योतिष' था। उसके बाद इसे 'कामरूप' कहने लगे। १३वीं सदी में वर्मा से आकर एक निषाद जाति के ताइशान कबीले ने इसको पूर्वी क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया। इन्हीं लोगों के कारण यहाँ का नाम आसाम पड़ा। नाम 'आसाम' कैसे पड़ा इस सम्बन्ध में पर्याप्त विवाद है।

६. नेपाली - यह पहाड़ी का पूर्वी रूप है। पहाड़ी बोलियों के प्रदेश के पूर्वी भाग की भाषा होने के कारण इसे पूर्वी पहाड़ी भी कहते हैं। 'नेपाली' को नेपाल में नैपाली कहते हैं। नेपाल में बोले जाने के कारण ही इसका नाम नेपाली है। 'नेपाल' शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विविध मत हैं। कुछ लोग नेपाल का सम्बन्ध 'ने' नामक ऋषि से जोड़ते हैं। नेपाल शब्द का प्राचीन प्रयोग कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है किन्तु भाषा के अर्थ में नेपाली का प्रयोग अत्याधुनिक है। 'नेपाली' नाम से लगता है कि यह पूरे नेपाल की भाषा है। यहाँ के आर्य शासक तथा अन्य आर्य लोग ही इसका प्रयोग करते हैं। नेपाल में आदिवासियों की भाषा 'नेवारी' है जो चीनी परिवार की तिब्बती बर्मी शाखा की एक बोली है।

१०. सिंहली - इसका क्षेत्र लंका के दक्षिणी भाग में है। लगभग ५वीं सदी ई. पू. में विजय नामक राजा के साथ कुछ भारतीय लंका में जाकर बस गये। इन्हीं लोगों के साथ यहाँ से यह भाषा भी अपने मूल रूप में गयी। सिंहली का सम्बन्ध सौराष्ट्र की पालि या पूर्व भाषा से है। बाद में बौद्ध धर्म के कारण मगध से भी लंका का सम्बन्ध हो गया और इस पर पालि तथा संस्कृत का भी कुछ प्रभाव पड़ा। सिंहली प्राकृत भारतीय प्राकृतों की तरह लंका की प्राकृत भाषा है। इसका अधिकांश साहित्य नष्ट हो चुका है, केवल कुछ अभिलेख ही शेष हैं। सिंहली में प्राप्त साहित्य १०वीं सदी के आसपास का है।

११. जिप्सी - घुमंतू लोगों द्वारा प्रयुक्त एक भाषा जिसे हबूड़ी, रोमनी, बंजारा तथा मंजारी आदि भी कहते हैं। जिप्सी भाषाएँ मूलतः भारोपीय परिवार की है। ५वीं सदी ई.पू. में बंजारा या जिप्सी भाषियों के पूर्वज जहाँ-तहाँ इधर-उधर फैल गये। इस वर्ग के कुछ लोग तो भारत के बाहर चले गये और कुछ भारत में विभिन्न प्रदेशों में चले गये। इस प्रकार इनकी भाषा मूलतः ५वीं सदी ई. पू. की प्राकृत भाषा से सम्बद्ध है।

१२. हिन्दी - 'हिन्दी' शब्द का सम्बन्ध प्रायः संस्कृत शब्द 'सिन्धु' से माना जाता है। प्रस्तुत पंक्तियों का लेखक मूलतः 'सिन्धु' शब्द को संस्कृत का न मानकर द्रविड़ या और किसी पूर्ववर्ती भाषा को मानता है, जहाँ से यह संस्कृत में आया है। 'सिन्धु' सिन्ध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आसपास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह 'सिन्धु' शब्द ईरानी में जाकर हिन्दु और फिर हिन्द हो गया और इसका अर्थ था सिन्ध प्रदेश। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के विभिन्न भागों से परिचित होते गये और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा यह शब्द धीरे-धीरे पूरे भारत का वाचक हो गया।

आधुनिक आर्य भाषाओं की विशेषतायें

आधुनिक काल में आर्य भाषाओं का वैविध्य बहुत बढ़ गया था। एक भाषा दूसरे भाषाभाषी के लिए दुर्बोध बन गयी थी। फिर भी कुछ सामूहिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

१. आधुनिक भाषाओं में वे समस्त ध्वनियाँ मिलती हैं, जो अपभ्रंश काल में अधिक थीं।

२. अधिकांश भाषाओं में द्वित्व का सरलीकृत रूप पाया जाता है। द्वित्व के स्थान पर दीर्घस्वर का प्रयोग किया जाता है।

कर्म < कम्म < नाम
अद्य < अज्ज < आज
धर्म < धम्म < धाम

३. कई भाषाओं में विशेषतया पंजाबी में स्वर भक्ति देखी जा सकती है।
४. स्थान विपर्यय की प्रवृत्ति भी आ गयी थी।
५. भाषाएँ प्रयोगात्मकता से वियोगात्मकता की ओर जा रही थीं।
६. अधिकांश भाषाओं में दो लिंग पाये जाते हैं-

(i) पुल्लिंग
(ii) स्त्रीलिंग |

७. संस्कृत प्रत्यय एवं उपसर्गों के साथ नवीन प्रत्ययों का आविष्कार भी हुआ।
८. शब्द समूह को चार वर्गों में विभक्त कर दिया गया-

(i) तत्सम्
(ii) तद्भव
(iii) देशज
(iv) विदेशी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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